One Reply to “आपन आपन डर”

  1. भोजपुरी

    भोजपुरी के किताब, भोजपुरी खाती समर्पित वेबसाइट प
    ( Bhojpurisahityangan.com )

    किताब के नाम – आपन आपन डर
    लेखक – डॉ तैयब हुसैन पीड़ित

    2009 में प्रकासित भइल ई किताब कुल 13 गो एकांकीयन के संग्रहित कइले बा।जरूर पढ़ीं एह एकांकी संग्रह के, हम एह में के एगो एकांकी के पढ़ला का बाद संछेप में रउआ सब के सोझा रख रहल बानी।

    जब राजा वेन (आपन प्रजा के साथे ) ऋषि-मुनियन के दिहल दान (उपजाऊ खेत) के फेर से मांगे गइलन आपन परजा खाति, भूख अकाल से बचावे खाती, निहोरा कइलन की एह अकाल के समय मे सारा माटी, खेत बंजर हो गइल बा, कहीं फसल नइखे होत सिवाय रउआ लोग के ई उपजाऊ खेतन में हरिहर फसल छोड़ी के।

    रउआ ऋषि मुनि लो त दयावान क्षमावान होखीला, भूखे हमार परजा मरतिया, रोअत-बिलखतिया। अइसन समय मे रउआ लोग के ई यज्ञ कइल शोभा नइखे देत। आपन उपजल फसल के अन्न के सब भूखल परजा में बांटी दिहिं, रउआ से करबद्ध निहोरा बा।

    अइसना सुनला का बाद सभ ऋषि लो पगला गइल, क्रोध में आ गइल, उल्टा पुल्टा बोले लागल लो। तबहुँ ‘वेन’ फेर से निहोरा कइलन त मय ऋषि मुनि मिल के राजा के कचार के मुआ दिहल लो। ( आज के हिसाब से राजा के मॉब लिंचिंग हो गइल)।

    आपन राजा के मरल देख के परजा पागल हो गइल आ ऋषि मुनि के मॉब लिंचिंग कर दिहल लो, बजर पथर पड़ल जमीन पर अन्न त ना उगल बाकी जवन उपजाऊ जमीन प लहलहात फसल रहे उहो लसरा कचरा गइल, खून से माटी लाल हो गइल।

    एह सब का बाद,
    कुछ साल बितला प ओह खेतन में झार जंगल पसर गइल। वेन के बेटा ‘पृथु’ प्रकिरती के एह अतिवृष्टि प नाराज होत कहलें “अब बरदास्त से फाजुल होता”। सब परजा के एकजुट कइले आ जंगल मे आग लगा दिहलें, कुछ पेड़ के मजबूत डाढ़ के इकट्ठा कई के ओह जलल जंगल के कोराई जोताई सुरु कइले, अथक परयास भइल, धरती प फेर फसल लहराइल। परजा ‘पृथु’ के जयजयकार कर उठल।

    ओहि बीचे घोसना भएल, हमनी के धरती के नया संस्कार, नया जीवन देवे आला राजा वेन के बेटा के नाम प एह धरती के नाम “पृथ्वी” कइल जाता।

    एह घटना के बहुत दिन हो गइल, का अभी के समय देखी के अइसन नइखे बुझात की हमनी के जिनगी के बहाव जइसे थम रहल बा, रुक रहल बा भा रोकल जा रहल बा।
    का अइसन नइखे लागत की ई धरती फेर से बेनाम हो गइल बिया, एहके नया नाम जोहता?

    सवाल बा ” धरती बेनाम – अब केकरा नाम? ”

    आदित्य प्रकाश अनोखा
    मनोहर बसंत, छपरा

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